Will Caste System End in India: भारत सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 2025 की आगामी जनगणना में जातिवार आंकड़े शामिल करने का ऐलान किया है। यह आजादी के बाद पहली बार होगा, जब देश में सभी जातियों की गणना की जाएगी। आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान ऐसी विस्तृत जाति जनगणना हुई थी। इस कदम से सामाजिक न्याय, कल्याणकारी योजनाओं और जातिगत भेदभाव को कम करने की दिशा में क्या बदलाव आएंगे? विशेषज्ञों की राय और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर हम इस मुद्दे को समझने की कोशिश करते हैं।
जाति जनगणना का ऐलान: क्यों और कैसे?
30 अप्रैल 2025 को केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट बैठक के बाद घोषणा की कि अगली जनगणना में जातियों की गिनती भी होगी। उन्होंने कहा, “जनगणना एक राष्ट्रीय और संवैधानिक प्रक्रिया है। कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर सर्वे किए, लेकिन वे पूरी तरह पारदर्शी नहीं थे। अब राष्ट्रीय स्तर पर यह काम सही तरीके से होगा।”
Caste Census India: जाति जनगणना 2026-2027- मोदी सरकार का बड़ा फैसला और 10 बड़े सवालों के जवाब
यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब विपक्षी दल और कई क्षेत्रीय पार्टियां लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रही थीं। बिहार में 2023 के जाति सर्वेक्षण ने इस बहस को और हवा दी, जिसमें पता चला कि राज्य की 63% से ज्यादा आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) से है। इस सर्वे ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति डेटा की जरूरत को और बल दिया।
जाति जनगणना का इतिहास
भारत में जाति गणना की शुरुआत ब्रिटिश शासनकाल में हुई। 1871 से नियमित जनगणना शुरू हुई, लेकिन 1881 से जातियों का व्यवस्थित रिकॉर्ड रखा जाने लगा। इतिहासकार निकोलस डिर्क्स अपनी किताब कास्ट्स ऑफ माइंड में लिखते हैं कि ब्रिटिश प्रशासन ने जातियों को स्थायी और कठोर पहचान में बदल दिया, जो पहले लचीली और संदर्भ आधारित थीं। कई आलोचकों का मानना है कि इस प्रक्रिया ने भारत में जाति व्यवस्था को और मजबूत किया।
1931 की जनगणना के बाद स्वतंत्र भारत में जाति गणना बंद कर दी गई। केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े ही जमा किए जाते रहे। 1980 में मंडल आयोग ने 1931 के डेटा के आधार पर अनुमान लगाया कि OBC की आबादी करीब 52% है, जिसके आधार पर 1990 में OBC आरक्षण लागू हुआ।
2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) के जरिए सभी जातियों के आंकड़े जमा करने की कोशिश की, लेकिन इसके पूर्ण आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं हुए। तब से जाति जनगणना की मांग लगातार बढ़ती रही।
जाति जनगणना से क्या बदलाव आएंगे?
समर्थकों की राय: विशेषज्ञों का कहना है कि जाति जनगणना सामाजिक न्याय और समावेशी नीतियों के लिए जरूरी है। प्रोफेसर योगेंद्र यादव का कहना है, “सामाजिक असमानताओं को ठीक करने के लिए पहले उन्हें मापना जरूरी है।” बिहार जैसे राज्यों के सर्वे से पता चला कि सटीक डेटा के आधार पर कल्याणकारी योजनाएं अधिक प्रभावी हो सकती हैं।
जाति जनगणना से सरकार को यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन से समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। इससे शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य जैसी योजनाओं को लक्षित तरीके से लागू किया जा सकता है। साथ ही, आरक्षण नीतियों को और पारदर्शी बनाया जा सकता है।
आलोचकों की चिंता: कुछ विशेषज्ञों को डर है कि जाति जनगणना सामाजिक विभाजन को और गहरा कर सकती है। राजनीति वैज्ञानिक सुहास पलशीकर ने अपने लेख में चेतावनी दी कि “जातियों की गणना उनकी सामाजिक और राजनीतिक अहमियत को कम करने के बजाय बढ़ा सकती है।” आलोचकों का यह भी कहना है कि इससे राजनीतिक दल समाज को बांटने के लिए डेटा का दुरुपयोग कर सकते हैं।
Will Caste System End in India: क्या जाति जनगणना से खत्म होगा भेदभाव?
पिछले 100 साल में जाति गणना नहीं होने के बावजूद न तो जाति व्यवस्था खत्म हुई और न ही इसके साथ जुड़ा भेदभाव। विशेषज्ञों का कहना है कि जाति जनगणना से भेदभाव पूरी तरह खत्म तो नहीं होगा, लेकिन यह इसे कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। सटीक आंकड़ों के आधार पर नीतियां बनाकर वंचित समुदायों को मुख्यधारा में लाया जा सकता है।
हालांकि, इसके लिए पारदर्शिता और डेटा की सटीकता जरूरी है। भारत में जाति की जटिलता को देखते हुए, गणना के दौरान गलतियां होने की आशंका रहती है। कई बार गणनाकर्ता उपनामों के आधार पर अनुमान लगाते हैं, जिससे डेटा में त्रुटियां आ सकती हैं।
राजनीतिक निहितार्थ
जाति जनगणना का फैसला राजनीतिक रूप से भी अहम है। 2024 के लोकसभा चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा था। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों ने इसे जोर-शोर से उठाया। अब केंद्र सरकार के इस फैसले को विपक्ष के दबाव और आगामी बिहार विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है।
यह कदम भारत के सामाजिक ताने-बाने को समझने और नीति निर्माण में बड़ा बदलाव ला सकता है। लेकिन, क्या यह जाति व्यवस्था को कमजोर करेगा या और मजबूत? यह सवाल अभी खुला है। जैसा कि विशेषज्ञ कहते हैं, “जाति को न गिनने से वह खत्म नहीं हुई। शायद गिनने से उसका असर कम करने की शुरुआत हो।”
1 thought on “Will Caste System End in India: भारत में 100 साल बाद जाति जनगणना: क्या खत्म होगा जातिगत भेदभाव?”