Caste Census India: भारत में जनगणना एक ऐसी प्रक्रिया है जो हर दस साल में देश की जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों को दर्ज करती है। लेकिन इस बार, 2026-2027 में होने वाली जनगणना में एक नया और ऐतिहासिक कदम उठाया जा रहा है—जातिगत जनगणना। स्वतंत्र भारत में पहली बार सभी जातियों की गणना की जाएगी, जो सामाजिक और आर्थिक नीतियों को प्रभावित कर सकती है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस फैसले को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद कई सवाल उठ रहे हैं। आइए, इस लेख में हम जातिगत जनगणना (Caste Census India) से जुड़े 10 बड़े सवालों के जवाब आसान और स्पष्ट भाषा में समझते हैं।
१. जातिगत जनगणना क्या है?
जातिगत जनगणना का मतलब है देश में रहने वाली हर जाति की जनसंख्या का आंकड़ा इकट्ठा करना। इसमें यह पता लगाया जाएगा कि भारत में किस जाति के कितने लोग हैं और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है। यह जानकारी सरकार को यह समझने में मदद करेगी कि विभिन्न जातियों की आबादी और उनकी जरूरतें क्या हैं। इससे पहले, 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान आखिरी बार पूर्ण जातिगत जनगणना हुई थी। स्वतंत्र भारत में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना की जाती रही है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य जातियों के आंकड़े दर्ज नहीं किए गए।
२. इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से हो रही थी, खासकर विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों की ओर से। 1931 की जनगणना और मंडल आयोग (1980) के अनुमानों के अनुसार, देश में OBC की आबादी लगभग 52-54% है। लेकिन इसके बाद कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं आया, जिसके कारण आरक्षण और कल्याणकारी नीतियों को लागू करने में अस्पष्टता रही। जातिगत जनगणना से यह साफ हो जाएगा कि कौन सी जातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर हैं, और उन्हें कितना समर्थन चाहिए। यह नीतियां बनाने और संसाधनों के बंटवारे में पारदर्शिता लाएगा।
३. जातिगत जनगणना कब और कैसे होगी?
केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि 2026-2027 में होने वाली जनगणना में जातिगत गणना (Caste Census India) शामिल होगी। यह प्रक्रिया दो चरणों में होगी:
- पहला चरण (1 अक्टूबर 2026): इसमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी और बर्फीले क्षेत्रों में गणना शुरू होगी। इन क्षेत्रों में सर्दियों में काम करना मुश्किल होता है, इसलिए पहले चरण में इन्हें शामिल किया गया है।
- दूसरा चरण (1 मार्च 2027): बाकी देश में जनगणना और जातिगत गणना होगी। इस चरण में मैदानी इलाकों में डेटा इकट्ठा किया जाएगा।
यह जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी, जिसमें मोबाइल ऐप और ऑनलाइन पोर्टल का इस्तेमाल होगा। सरकार 16 जून 2025 को जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत अधिसूचना जारी कर सकती है, जिसके बाद कर्मचारियों की नियुक्ति, प्रशिक्षण और अन्य तैयारियां शुरू होंगी।
४. इसका इतिहास क्या है?
भारत में जनगणना का इतिहास लंबा है। ब्रिटिश काल में 1881 से 1931 तक हर जनगणना में जातियों की गणना की गई थी। 1901 में पहली व्यवस्थित जनगणना हुई, जिसमें एच.एच. रिजले ने वर्ण व्यवस्था और पेशे के आधार पर जातियों को वर्गीकृत किया। लेकिन 1941 में जातिगत आंकड़े जुटाए गए, पर इन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया। स्वतंत्र भारत में 1951 से 2011 तक सात जनगणनाएं हुईं, लेकिन इनमें केवल SC और ST के आंकड़े दर्ज किए गए। 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) कराई, लेकिन इसके आंकड़े पूरी तरह सार्वजनिक नहीं हुए।
India 2027 Caste Census: आ रही है भारत की सबसे बड़ी जनगणना, क्या जाति गणना से बदलेगा देश का भविष्य?
५. जातिगत जनगणना से क्या बदलाव आएंगे?
जातिगत जनगणना के कई दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:
- आरक्षण नीतियों में सुधार: वर्तमान में OBC को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10% आरक्षण मिलता है। लेकिन सटीक आंकड़ों के अभाव में यह तय करना मुश्किल है कि यह पर्याप्त है या नहीं। जातिगत जनगणना के बाद OBC आरक्षण को बढ़ाने की मांग उठ सकती है, और 50% आरक्षण की सीमा को हटाने की चर्चा हो सकती है।
- सामाजिक-आर्थिक नीतियां: यह डेटा सरकार को यह समझने में मदद करेगा कि कौन सी जातियां आर्थिक रूप से कमजोर हैं, और उनके लिए लक्षित योजनाएं बनाई जा सकती हैं।
- राजनीतिक प्रभाव: यह डेटा 2026 में होने वाले परिसीमन (निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करना) और 2027 में सात राज्यों के विधानसभा चुनावों को प्रभावित कर सकता है।
६. किन राज्यों में पहले हुए हैं जातिगत सर्वे?
कई राज्यों ने अपने स्तर पर जातिगत सर्वे किए हैं, क्योंकि संविधान के अनुसार जनगणना केंद्र सरकार का विषय है।
- बिहार: 2023 में JDU-RJD की महागठबंधन सरकार ने जातिगत सर्वे किया, जिसमें पता चला कि OBC और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) राज्य की आबादी का 63% से अधिक हैं।
- कर्नाटक: 2015 में सिद्धारमैया सरकार ने जातिगत सर्वे कराया, लेकिन इसके नतीजे सार्वजनिक नहीं हुए।
- तेलंगाना: 2023 में कांग्रेस सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत सर्वे कराया और इसके आंकड़े जारी किए।
७. क्या चुनौतियां हैं?
जातिगत जनगणना कराना आसान नहीं है। कई चुनौतियां सामने हैं:
- जातियों की संख्या: 1901 में 1646 जातियां थीं, जो 1931 में बढ़कर 4147 हो गईं। मंडल आयोग ने 1980 में 3428 OBC जातियों की पहचान की थी। 2011 के SECC में 46 लाख जाति और उपजाति के नाम सामने आए, जो डेटा प्रबंधन को जटिल बनाते हैं।
- नामों में अंतर: एक ही जाति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों या स्पेलिंग से लिखा जाता है, जिससे गलतियां हो सकती हैं। 2011 के SECC में यही समस्या देखी गई थी।
- केंद्र और राज्य की सूचियां: OBC की केंद्र और राज्य सरकारों की सूचियां अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में कुछ ब्राह्मण जातियां OBC में हैं, जबकि अन्य राज्यों में जनरल में।
- सत्यापन की कमी: सरकार के पास यह जांचने का कोई तरीका नहीं है कि कोई व्यक्ति अपनी जाति सही बता रहा है या गलत।
८. यह क्यों बन गया राजनीतिक मुद्दा?
जातिगत जनगणना लंबे समय से राजनीतिक मुद्दा रही है।
- मंडल आयोग (1980): इसने OBC को 27% आरक्षण की सिफारिश की, लेकिन सटीक आंकड़ों की कमी के कारण इसे लागू करने में दिक्कतें आईं।
- विपक्ष का दबाव: कांग्रेस, RJD और अन्य विपक्षी दल इसकी मांग करते रहे हैं। राहुल गांधी ने “जिसकी जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी” का नारा दिया।
- मोदी सरकार का यू-टर्न: पहले सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जातिगत जनगणना प्रशासनिक रूप से जटिल है। लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में चुनावी दबाव के कारण 30 अप्रैल 2025 को इसे मंजूरी दी गई।
९. डिजिटल जनगणना का क्या मतलब है?
2026-2027 की जनगणना भारत (Caste Census India) की पहली डिजिटल जनगणना होगी। इसके लिए एक मोबाइल ऐप और सेल्फ-एन्युमरेशन पोर्टल तैयार किया गया है। लोग अपने आंकड़े ऑनलाइन दर्ज कर सकेंगे, खासकर वे जिन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को अपडेट किया है। इससे प्रक्रिया तेज होगी और पहले 5 साल की तुलना में अब 3 साल में पूरी हो सकती है।
१०. इसका महत्व और भविष्य?
जातिगत जनगणना (Caste Census India) सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है। यह सरकार को कमजोर वर्गों तक कल्याणकारी योजनाएं पहुंचाने में मदद करेगी। साथ ही, यह परिसीमन और महिला आरक्षण जैसे मुद्दों को प्रभावित कर सकती है। हालांकि, कुछ लोग इसे राजनीतिक हथियार के रूप में देखते हैं, क्योंकि इसके आंकड़े चुनावी रणनीतियों को प्रभावित कर सकते हैं।
निष्कर्ष
जातिगत जनगणना 2026-2027 (Caste Census India) भारत के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। यह न केवल देश की सामाजिक संरचना को समझने में मदद करेगा, बल्कि नीतियों को और समावेशी बनाने में भी योगदान देगा। हालांकि, इसके सामने कई चुनौतियां हैं, जैसे डेटा की सटीकता और जटिलता। फिर भी, यह कदम सामाजिक और आर्थिक समानता की दिशा में एक नई शुरुआत हो सकता है। क्या यह वाकई समाज में बदलाव लाएगा, या सिर्फ राजनीतिक दांव साबित होगा? इसका जवाब समय ही देगा।
4 thoughts on “Caste Census India: जाति जनगणना 2026-2027- मोदी सरकार का बड़ा फैसला और 10 बड़े सवालों के जवाब”