Caste Census in Maharashtra: महाराष्ट्र में दशकीय जनगणना की तैयारियां अभी शुरू भी नहीं हुई हैं, लेकिन सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। 20 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि इस बार जनगणना में जातिगत गणना को भी शामिल किया जाएगा। इस फैसले ने सरकार के समर्थकों और विरोधियों, दोनों को हैरान कर दिया। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले जातिगत जनगणना के विचार के खिलाफ रहे हैं। 2024 में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे अपने चुनावी अभियान का मुख्य मुद्दा बनाया था, तब पीएम मोदी ने इसे “शहरी नक्सल साजिश” करार दिया था।
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए 2010 के लोकसभा सत्र का एक वीडियो सामने लाया। इस वीडियो में भाजपा के तत्कालीन उपनेता गोपीनाथ मुंडे 2011 की जनगणना में जातिगत गणना की मांग करते दिख रहे हैं। पार्टी ने दावा किया कि यह मांग सबसे पहले उनके ही नेता ने उठाई थी, जिससे यह साबित होता है कि भाजपा शुरू से ही इस मुद्दे पर गंभीर थी।
गोपीनाथ मुंडे और महाराष्ट्र की सियासत
महाराष्ट्र के पहले बड़े भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे वंजारी समुदाय से आते थे, जो राज्य के मध्य भागों में बसा एक अर्ध-घुमंतू समुदाय है। उनकी राजनीतिक उभार 1990 के दशक में मंडल आयोग के बाद की स्थिति में हुई, जब अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण की मांग जोर पकड़ रही थी। महाराष्ट्र ने सबसे पहले OBC के लिए सरकारी नौकरियों, शैक्षिक संस्थानों और स्थानीय निकाय चुनावों में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। इस आरक्षण को 404 समुदायों के बीच छह उप-श्रेणियों में बांटा गया।
उस समय गोपीनाथ मुंडे जी ने OBC समुदायों की ओर से यह मांग उठाई थी कि उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का कोटा निर्धारित किया जाए। यह मांग आज भी कई OBC समुदायों की ओर से दोहराई जा रही है। लेकिन पिछले एक दशक में महाराष्ट्र की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति और जटिल हो गई है।
मराठा आरक्षण का उभरता मुद्दा
महाराष्ट्र की सबसे बड़ी जातीय आबादी मराठा समुदाय की है, जो अब आरक्षण की मांग कर रहा है। यह मांग खासकर मराठवाड़ा क्षेत्र में तेजी से जोर पकड़ रही है, जहां मराठा और OBC समुदायों के बीच तनाव बढ़ता दिख रहा है। मराठा समुदाय चाहता है कि उन्हें OBC श्रेणी के तहत आरक्षण दिया जाए, जिसका कई OBC समुदाय विरोध कर रहे हैं। इस मुद्दे ने महाराष्ट्र की सियासत में एक नया मोड़ ला दिया है।
जातिगत जनगणना का सियासी गणित
केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र में सियासी दल अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। जहां एक ओर OBC समुदाय अपनी आबादी के आधार पर अधिक आरक्षण की मांग कर रहा है, वहीं मराठा समुदाय भी अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में है। भाजपा इस मुद्दे पर संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है, ताकि वह दोनों समुदायों के बीच अपनी साख बनाए रख सके।
पार्टी ने गोपीनाथ मुंडे के पुराने बयानों को सामने लाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह हमेशा से सामाजिक न्याय के पक्ष में रही है। लेकिन मराठा और OBC समुदायों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए यह रास्ता आसान नहीं होगा। जनगणना शुरू होने से पहले ही सियासी दल अपने-अपने समीकरण साधने में जुट गए हैं।
Caste Census in India: भारत में जाति जनगणना की आवश्यकता और चुनौतियाँ
Caste Census in Maharashtra: क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जातिगत जनगणना का डेटा महाराष्ट्र की सियासत को पूरी तरह बदल सकता है। यह न केवल आरक्षण की नीतियों को प्रभावित करेगा, बल्कि स्थानीय निकाय चुनावों और विधानसभा सीटों के समीकरण को भी नया रूप दे सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस डेटा के आधार पर कई समुदाय अपनी ताकत को और मजबूत करने की कोशिश करेंगे।
जैसे-जैसे जनगणना की तारीख नजदीक आ रही है, महाराष्ट्र में सियासी माहौल और गर्म होने की उम्मीद है। सभी दल इस डेटा का इस्तेमाल अपने हक में करने की रणनीति बना रहे हैं। लेकिन यह डेटा सामाजिक समरसता को बढ़ाएगा या फिर जातिगत तनाव को और हवा देगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
संदर्भ: As Maharashtra waits to be counted, politics is already doing the math
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