Bharat Ki Janganana Ka Itihas: भारत में जनगणना यानी जनसंख्या की गिनती एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण प्रशासनिक काम है, जो हर दस साल में किया जाता है। इसके जरिए देश के सभी लोगों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय जानकारी को इकट्ठा किया जाता है, उसका विश्लेषण किया जाता है और उसे प्रकाशित किया जाता है।
भारत जैसे विविधता से भरे देश में, जहां भौतिक और सांस्कृतिक विविधता बहुत है, जनगणना करना एक जटिल लेकिन रोचक प्रक्रिया है। इससे मिलने वाली जानकारी—जैसे घर, सुविधाएं, लोगों के सामाजिक-आर्थिक गुण और सांस्कृतिक विशेषताएं—योजनाकारों, शोधकर्ताओं, प्रशासकों और डेटा उपयोगकर्ताओं के लिए बहुत कीमती है।
भारत उन गिनती के देशों में शामिल है, जो हर दस साल में नियमित जनगणना करते हैं। इस लेख में हम भारत की जनगणना के इतिहास (Bharat Ki Janganana Ka Itihas) को स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद के दौर में बांटकर देखते हैं।
स्वतंत्रता से पहले की जनगणना: शुरुआत
भारत में जनगणना का इतिहास बहुत पुराना है। ऋग्वेद (800-600 ईसा पूर्व) में इसका जिक्र मिलता है, जहां किसी तरह की जनसंख्या गिनती का उल्लेख है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र (321-296 ईसा पूर्व) में भी कर (टैक्स) के लिए जनगणना करने की बात कही गई थी। मुगल सम्राट अकबर के समय में ‘आइन-ए-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योग, संपत्ति और अन्य विशेषताओं का विवरण दिया गया था। आधुनिक जनगणना की शुरुआत 19वीं सदी में हुई, जब 1800 में इंग्लैंड में जनगणना शुरू हुई।
भारत में इसकी शुरुआत 1824 में इलाहाबाद और 1827-28 में बनारस में जेम्स प्रिन्सेप ने की। 1830 में हेनरी वाल्टर ने ढाका में पहली पूरी जनगणना की, जिसमें जनसंख्या, लिंग, आयु समूह और घर की सुविधाओं का डेटा इकट्ठा किया गया।
1849 में भारत सरकार ने स्थानीय सरकारों को हर पांच साल में जनसंख्या का विवरण तैयार करने का आदेश दिया। इसके परिणामस्वरूप मद्रास में नियमित जनसंख्या गिनती शुरू हुई, जो 1851-52, 1856-57, 1861-62 और 1866-67 में जारी रही। 1852 में उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में घर-घर जाकर जनसंख्या गिनती की गई।
1865 में भारत सरकार और गृह सरकार ने 1871 में एक पूरी जनगणना करने का फैसला लिया, लेकिन 1859 के विद्रोह के कारण इसे 1861 में टाल दिया गया था। 1872 की जनगणना, जो 1866-67 के आधार पर की गई, में 17 सवालों का एक घर रजिस्टर भरा गया, जिसमें नाम, आयु, धर्म, जाति, शिक्षा और व्यवसाय जैसी जानकारी शामिल थी।
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1881 की जनगणना, जो डब्ल्यू.सी. प्लोडेन के नेतृत्व में 17 फरवरी, 1881 को हुई, एक आधुनिक और समकालिक जनगणना का प्रमुख पड़ाव थी। इसमें 12 सवालों की एक प्रश्नावली भरी गई, जिसमें लिंग, वैवाहिक स्थिति, जन्म स्थान, भाषा और शिक्षा जैसी जानकारी शामिल थी। इसके बाद से भारत में हर दस साल में जनगणना नियमित रूप से होती रही है।
1891, 1901, 1911, 1921, 1931 और 1941 की जनगणनाओं में धीरे-धीरे सवालों की संख्या और विषय बढ़ते गए। 1941 की जनगणना में 22 सवालों का एक व्यक्तिगत स्लिप भरा गया, जिसमें नए सवाल जैसे बच्चों की संख्या, रोजगार की खोज और शिक्षा स्तर शामिल किए गए।
स्वतंत्रता के बाद की जनगणना: नया दौर
भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद, 1948 में जनगणना अधिनियम लागू हुआ, जिसके तहत स्वतंत्रता के बाद की जनगणनाएं की गईं। 1951 की जनगणना, जो 9 से 28 फरवरी, 1951 तक चली, स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना थी। इसमें 13 सवालों का एक व्यक्तिगत स्लिप भरा गया, जिसमें नाम, संबंध, जन्म स्थान, लिंग, आयु, आर्थिक स्थिति, धर्म और शिक्षा जैसी जानकारी शामिल थी। जम्मू और कश्मीर का हिस्सा इस जनगणना में शामिल नहीं था और वहां की जनसंख्या का अनुमान पुराने डेटा के आधार पर किया गया।
1961 की जनगणना में घर प्रश्नावली और व्यक्तिगत स्लिप दोनों का उपयोग किया गया। इसमें रोजगार के चार प्रकार और प्रवासी जानकारी जोड़ी गई। 1971 की जनगणना दो चरणों में की गई—घर सूचीकरण और जनसंख्या गिनती—और 17 सवालों का एक व्यक्तिगत स्लिप भरा गया। इसमें प्रवासी और प्रजनन संबंधी नए सवाल शामिल किए गए।
1981, 1991, 2001 और 2011 की जनगणनाओं में भी दो चरण जारी रहे—घर सूचीकरण और जनसंख्या गिनती। इनमें सवालों की संख्या बढ़ती गई, जैसे 1981 में 16, 1991 में 21, 2001 में 23 और 2011 में 29 सवाल।
2011 की जनगणना में एक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) भी तैयार किया गया, जो देश के निवासियों का एक व्यापक पहचान डेटा बेस है। इसमें घर सूचीकरण के दौरान 34 सवालों की एक प्रश्नावली भरी गई, जिसमें कंप्यूटर/लैपटॉप, मोबाइल फोन, शौचालय प्रकार और पीने के पानी के स्रोत जैसे नए सवाल शामिल थे।
जनगणना प्रश्नावली में भी नए सवाल जैसे लिंग के लिए ‘अन्य’ विकल्प, तलाक और अलग रहने के अलग कोड, और दिव्यांगता के विभिन्न प्रकार शामिल किए गए।
Bharat Ki Janganana Ka Itihas: भारतीय जनगणना की विशेषता
भारतीय जनगणना न केवल सांख्यिकीय डेटा प्रदान करती है, बल्कि इसका विश्लेषण और व्याख्या भी व्यापक रूप से की जाती है। हर जनगणना में समय और जरूरत के अनुसार बदलाव किए गए हैं। इसके बावजूद, भारत में 1871 से लेकर आज तक जनगणना निरंतर चली आ रही है, जो इसकी विश्वसनीयता और महत्व को दर्शाता है। यह जनगणना न केवल नियोजन और शोध के लिए उपयोगी है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों को समझने में भी मदद करती है।
Bharat Ki Janganana Ka Itihas: भारत की जनगणना से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारत की पहली जनगणना कब हुई थी?
उत्तर: भारत की पहली जनगणना 1872 में हुई थी। इसे ब्रिटिश शासन के दौरान आयोजित किया गया था, जिसमें पूरे देश में घर-घर जाकर जनसंख्या का डेटा इकट्ठा किया गया। हालांकि, इससे पहले 1830 में ढाका में पहली स्थानीय जनगणना हुई थी।
2. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी है?
उत्तर: 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1,210,854,977 (लगभग 121 करोड़) थी।
3. पहली जनगणना कब हुई थी?
उत्तर: पहली जनगणना 1872 में हुई थी। यह भारत में ब्रिटिश शासन के तहत आयोजित की गई थी, जिसमें 17 सवालों का एक घर रजिस्टर भरा गया था।
4. 2011 जनगणना के अनुसार?
उत्तर: 2011 जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 1,210,854,977 थी। इस जनगणना में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) भी तैयार किया गया और इसमें 29 सवालों की एक प्रश्नावली भरी गई थी, जिसमें लिंग, आयु, शिक्षा, और सुविधाओं जैसे विषय शामिल थे।
5. जनगणना कब होगी?
उत्तर: भारत में जनगणना हर दस साल में होती है। आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। अगली जनगणना, जो 2021 में होनी थी, कोविड-19 महामारी के कारण टाल दी गई थी। अब यह 2026 में होने की संभावना है, लेकिन सटीक तारीख की आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है।
6. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का लिंगानुपात कितना है?
उत्तर: 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का लिंगानुपात 943 था, यानी प्रति 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएं थीं।
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