Jatigat Janganana: जातिगत जनगणना पर सियासी घमासान: कांग्रेस ने केंद्र की मंशा पर उठाए सवाल, सचिन पायलट ने दिया तेलंगाना मॉडल का सुझाव

Jatigat Janganana: केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रव्यापी जनगणना के लिए जारी अधिसूचना में जातिगत जनगणना का जिक्र न होने से सियासी हलचल तेज हो गई है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ने सरकार से जातिगत जनगणना को लेकर स्थिति स्पष्ट करने और तेलंगाना मॉडल अपनाने की मांग की है। साथ ही, उन्होंने जनगणना में देरी और अपर्याप्त बजट आवंटन पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस को आशंका है कि जातिगत जनगणना का हाल कहीं महिला आरक्षण विधेयक जैसा न हो, जो संसद में पारित होने के बावजूद अभी तक लागू नहीं हुआ है।

केंद्र सरकार ने 16 जून 2025 को 16वीं जनगणना के लिए अधिसूचना जारी की, जो 2011 की जनगणना के 16 साल बाद 2027 में होगी। इस अधिसूचना में जातिगत जनगणना का स्पष्ट उल्लेख न होने से कांग्रेस ने सरकार की नीयत पर संदेह जताया है। पार्टी का कहना है कि सरकार ने दबाव में आकर जातिगत जनगणना की घोषणा तो की, लेकिन अधिसूचना में इसे शामिल नहीं किया गया।

दिल्ली के इंदिरा भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सचिन पायलट ने कहा, “कांग्रेस और हमारे नेता राहुल गांधी लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग उठाते रहे हैं। यह केवल जातियों की गिनती नहीं, बल्कि विभिन्न वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने का जरिया है। इससे नीति निर्माण में मदद मिलेगी और समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए योजनाएं बनाई जा सकेंगी। लेकिन सरकार की अधिसूचना में जातिगत गणना का जिक्र नहीं है, जिससे उनकी मंशा पर सवाल उठता है।”

पायलट ने जनगणना में देरी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “2020 में जनगणना की तैयारियां अंतिम चरण में थीं। 2021 में कोविड महामारी के बावजूद सरकार ने कई सर्वेक्षण और चुनाव कराए, फिर अब जनगणना में छह साल की देरी क्यों? यह देरी जानबूझकर की जा रही है।” उन्होंने बजट आवंटन पर भी निशाना साधा और कहा, “जनगणना के लिए 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये की जरूरत है, लेकिन सरकार ने 2025-26 के बजट में मात्र 574 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। यह राशि पूरी तरह अपर्याप्त है।”

कांग्रेस ने तेलंगाना में हाल ही में हुए जातिगत सर्वेक्षण को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाने की वकालत की है। पायलट ने कहा, “तेलंगाना मॉडल एक पारदर्शी और वैज्ञानिक तरीका है, जिसमें विभिन्न जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन किया गया। केंद्र सरकार को इसे अपनाकर जल्द से जल्द जनगणना शुरू करनी चाहिए।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि सरकार की ओर से भ्रामक स्थिति पैदा करने की कोशिश की जा रही है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

कांग्रेस ने यह भी आशंका जताई कि जातिगत जनगणना का मामला महिला आरक्षण विधेयक की तरह लटक सकता है। पायलट ने कहा, “महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पारित हुए दो साल हो गए, लेकिन इसे लागू करने की कोई समयसीमा नहीं बताई गई। कहीं जातिगत जनगणना का भी यही हाल न हो।”

केंद्र सरकार ने हालांकि दावा किया है कि 2027 की जनगणना में जातिगत गणना शामिल होगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि अधिसूचना में जातिगत गणना का जिक्र न होने की बात भ्रामक है। मंत्रालय के मुताबिक, जनगणना दो चरणों में होगी—पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में शुरू होगा, जबकि दूसरा चरण 1 मार्च 2027 से बाकी राज्यों में होगा।

इस बीच, बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सरकार जातिगत जनगणना के लिए प्रतिबद्ध है। बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, “कांग्रेस भ्रम फैला रही है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि अगली जनगणना में जातिगत आंकड़े भी शामिल होंगे।”

जातिगत जनगणना का मुद्दा लंबे समय से राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र रहा है। कांग्रेस का कहना है कि यह न केवल सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा, बल्कि नीति निर्माण और संसाधनों के उचित वितरण में भी मदद करेगा। पार्टी ने सरकार से मांग की है कि वह इस मुद्दे पर राजनीति बंद करे और पारदर्शी तरीके से जनगणना को अंजाम दे।

यह विवाद आने वाले दिनों में और गर्माने की संभावना है, क्योंकि विपक्षी दल इस मुद्दे को संसद और सड़क दोनों पर उठाने की तैयारी में हैं। जनगणना और जातिगत गणना से जुड़े आंकड़े न केवल सामाजिक-आर्थिक नीतियों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि संसदीय और विधानसभा सीटों के परिसीमन जैसे मुद्दों पर भी इसका असर पड़ सकता है।

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